Thursday, July 28, 2022

श्रीमद्भगवद्गीता उत्तर 4

 आध्यात्मिक विश्वविद्यालयद ⚜


 🚩 श्रीमद्भगवद्गीता क्लास 🚩


उत्तर पत्र-5



 Dt. 11-07-2022 - रविवार




Q-1) निम्नलिखित पर्याय में से उत्तर इसप्रकार हैं:-


1) हस्तिनापुर का अर्थ है?


उत्तर- C) देहभानी हाथियों का पुर।


ह्रीषिकेशम तदा वाक्यम इदम आह महीपते ।।1:21।।)


2) दुर्बुद्धि कौन था?


उत्तर- B) दुर्योधन 


धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धे..।।1:23।।


3) अर्जुन ने भगवान को अपना रथ कहां खड़ा करने बोला?


उत्तर- A) कौरव पांडव दोनों सेनाओं के बीच 


सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मे अच्युत ৷৷1.21৷৷ 


4) गुड़ाकेश माना निद्राजीत शब्द किसके लिए आया है?


उत्तर- B) अर्जुन 


एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत ।।1:24।।


5) बुद्धि का अर्थ क्या है?


उत्तर- B) परखने की शक्ति 


6) पाप का मूल क्या है?


उत्तर- A) देहभान 


7) आत्मा शरीर रूपी रथ का स्वामी और बुद्धि क्या है?


उत्तर- A) सारथी 


बुद्धि तु सारथि.. ।। कठोर उपनिषद।।1:3:3।।


8) काले धुएं से अग्नि ढका है वैसे - विकारों से ढका है।


उत्तर- A) बुद्धि का ज्ञान  


धूमेन आव्रीयते ..


यथा उल्बेन आवृत: गर्भ तथा तेन इदम आवृतम।।


अर्थ


वैसे ही काम क्रोध आदि विकारों से यह बुद्धि का ज्ञान ढका रहता है


9) अर्जुन ने रथ को दोनों सेनाओं के बीच में क्यों खड़ा करने बोला?


उत्तर- C) युद्ध के लिए उत्सुकता पूर्वक खड़े कौरव सेना को देखने


यौत्स्यमनान अवेक्षेहम.. ।। 1:23।।


10) गलत निर्णय से क्या होता है?


उत्तर- C) पाप कर्म होता है


Q-2 गलत या सही वाक्य :-


1) जीवात्मा अपना शत्रु और मित्र स्वयं है।


(यह वाक्य सही है)


2) शरीर को रथ समझ और जीवात्मा को रथ का स्वामी समझो बुद्धि को सारथी और मन को घोड़ों के लगाम की रस्सी समझो।


(यह वाक्य सही है)


3) स्थूल इंद्रियों से मन शक्तिशाली है और मन से भी शक्तिशाली बुद्धि और बुद्धि मानो की बुद्धि परमात्मा है।


(यह वाक्य सही है)


4) सभी विकारों का मूल है - काम विकार है।


(यह वाक्य सही है)


5) सतयुग त्रेतायुग में देवताएँ आत्मिक स्थिति के कारण श्रेष्ठ ज्ञानेंद्रियों के भोगी है।


(यह वाक्य सही है)


6) रजोगुण से पैदा हुए यह काम और क्रोध ही डकैत है और सत्यानाशी है।


(यह वाक्य सही है)


7) राम राज्य के बहाने रावण राज्य लाने वाले इन कर्माभिमानी कौरवों को देखिए। गीता 1:25


(यह वाक्य सही है)


पश्य ऐतान समवेतान कुरुन इति ।।1:25।।


8) हमें किसी भी परिस्थिति का निर्णय मन की भावनाओं के आधार पर करना चाहिए।


(यह वाक्य गलत है)


उत्तर - हमें भावनाओं से भी ज्यादा हर परिस्थिति का निर्णय बुद्धि से लेना है, समझ से लेना है कि किससे फायदा है और किससे नुकसान है। बुद्धि माना ही ज्ञान , समझ तो ज्ञान युक्त रीति से निर्णय लेना है। लेकिन वह तामसी बुद्धि न हो, सतों प्रधान बुद्धि हो अर्थात इसे पूरा टटोलना है। ईश्वर की श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ श्रीमत के आधार से हमारी बुद्धि काम करती रहती है या नहीं उस आधार से टटोलना है। कोई भी परिस्थिति में निर्णय बुद्धि के आधार से ही लेना है।


Q-3) संक्षेप में उत्तर इस प्रकार है:-


1) कठिनाई से पूरी होने वाली अग्नि काम विकार रूपी अग्नि है।


क्योंकि काम और क्रोध जीवन में सबसे ज्यादा परेशान करने वाले है। इसलिए बोला- कठिनाई से पूरी होने वाली अग्नि है काम विकार रूपी अग्नि। काम को अग्नि की भांति कभी पूर्ण ना होने वाला बतलाते हैं।


इस काम विकार रूपी अग्नि से (चंचल मन में) ज्ञान ढका रहता है।



*कामरूपेण अनलेन ..*।।3.39।।


2) कौरवों को कर्माभिनानी इसलिए बोला है क्योंकि राम के बहाने रावण राज्य लाने वाले टेहरी नंगल आदि योजनाओं बनाकर विनाशी दुनिया के कर्मों का अभिमान रखते हैं। और रावण राज्य ही लाते हैं तो इस दुनिया के कर्मों के आधार से जो अभिमानी है उनको कर्माभिमानी बोला हुआ है।


एतान कुरुन पश्य ।।1:25।।


3) अपने मन बुद्धि द्वारा ज्योति बिंदु आत्मा को ऊंची स्थिति में ले जाए आत्मा को भ्रष्ट इंद्रियों की अधीनता में ना जाने दें क्योंकि ज्योति बिंदु आत्मा ही अपना सदाकाल का सहयोगी मित्र है और आत्मा ही अपना शत्रु है।


(हीरो पार्टधारी ही विश्व का मित्र अर्थात विश्वामित्र है)


उद्धरेदात्मना आत्मानं न आत्मानम अवसादयेत् ।


आत्मा एव हि आत्मनो बन्धु: आत्मा एव रिपु: आत्मन: ।।6:5।।


इसमें भी यही बात आयी है।


जिसने अपनी चेतन बनी मन बुद्धि द्वारा ज्योति बिंदु आत्मा को जीता है उसकी आत्मा ही मनजीत होने से अपना मित्र है (दूसरा मित्र -शत्रु नहीं) किंतु अनात्मस्थ देहभानी की चंचल मन वाली क्षीण बुद्धि आत्मा ही शत्रु की तरह शत्रुता करने में तत्पर रहती है।


बन्धु आत्मा आत्मन: तस्य येन आत्मा एव आत्मना जित: ।


अनात्मन: तु शत्रुत्वे वर्तेत आत्मा एव शत्रुवत् ।।6:6।।


तो यह दो श्लोक से यह बात सिद्ध होती है कि आत्मा अगर आत्मिक स्थिति में है तो अपना मित्र है और आत्मिक स्थिति में नहीं है तो अपना शत्रु बनती है।


4) बुद्धि का ज्ञान काम विकार से ढका हुआ है इसकी तुलना काले धुएं और गर्भाशय की थैली से किया है।


धूमेन आव्रियते वह्रि यथा आदर्श: मलेन च ।


यथा उल्बेन आवृतो गर्भ: तथा तेन इदम आवृतं ।।3/38।।


(उल्बेन/गर्भाशय की थैली, Amnion, umblical chord)


अर्थ


  जैसे काले धुएं से अग्नि और मन दर्पण रूप शीशा गंदे गंदे कर्म के मेल से अच्छी तरह द्वापर से ही ढक जाता है जैसे गर्भ मूत पलीती कर्म से बनी थैली से ढका रहता है वैसे उस रजोगुण पैदाकत्रि भ्रष्ट कर्मन्द्रियों के दुष्कर्म से यह बुद्धि का ज्ञान ढका हुआ है।


5) शरीर रूपी रथ है और इंद्रियां घोड़े हैं इसका वर्णन कठोर उपनिषद में आया है


आत्मानं रथिनं विद्धि शरीरं रथमेव तु ।


बुद्धिं तु सारथिं विद्धि मनः प्रग्रहमेव च ।।


(कठोपनिषद्, अध्याय १, वल्ली ३, मंत्र ३)


इस जीवात्मा को तुम रथी, रथ का स्वामी, समझो, शरीर को उसका रथ, बुद्धि को सारथी, रथ हांकने वाला, और मन को लगाम समझो । (लगाम – इंद्रियों पर नियंत्रण हेतु, अगले मंत्र में उल्लेख ।)


इंद्रियाणि हयानाहुर्विषयांस्तेषु गोचरान् ।


आत्मेन्द्रियमनोयुक्तं भोक्तेत्याहुर्मनीषिणः ।।


(कठोपनिषद्, अध्याय १, वल्ली ३, मंत्र ४)


मनीषियों, विवेकी पुरुषों, ने इंद्रियों को इस शरीर-रथ को खींचने वाले घोड़े कहा है, जिनके लिए इंद्रिय-विषय विचरण के मार्ग हैं, इंद्रियों तथा मन से युक्त इस आत्मा को उन्होंने शरीर रूपी रथ का भोग करने वाला बताया है ।


6) सद्बुद्धि व कुबुद्धि के लिए


कहावत इस प्रकार है-


जहाँ सुमति तहाँ सम्पति नाना;


जहाँ कुमति तहाँ बिपति निदाना.


अर्थ


मति माना बुद्धि, सुमति माना अच्छी बुद्धि 


जिससे संपन्नता आती है ।


जहां आपसी प्रेम और सद्भाव होता है वहां सारे सुख और संपत्ति होती है।


 कुबुद्धि अर्थात खराब बुद्धि। जिससे विध्न और नुकसान ही होता है। और जहाँ आपस में द्वेष और वैमनष्य होता है वहां दुखी व विपन्न हो जाते हैं।


Q-4 निम्नलिखित प्रश्नों के लिए श्लोक:-


1) शिव बाबा ने मुकर्रर शरीर रूपी रथ को कौरव पांडव सेनाओं के बीच में खड़ा किया।


एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत ।


सेनयोरूभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् ।।1:24।।


2) काम क्रोध को तू वैरी समझ।


काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भव: ।


महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम् ।।3:37।।


संदर्भ


अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुष: ।


अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजित: ।।3:36।।


गीता 3:36 में अर्जुन ने भगवान से प्रश्न पूछा है - आत्मा जो है वह किसकी प्रेरणा से पाप करती है?


इस प्रश्न का जवाब ही उपर्युक्त गीता 3:37 श्लोक में दिया गया है।


3) दस इंद्रियां, अव्यक्त मन, व बुद्धि काम विकार का आश्रय स्थान है।


इन्द्रियाणि मन: बुद्धि: अस्य अधिष्ठानम उच्यते ।


एतै: विमोहयति एष: ज्ञानम आवृत्य देहिनम् ।।3:40।।


4) अर्जुन ने शिव बाबा से कहा- मुझे किनके साथ सत्य असत्य का युद्ध करना है मैं उनका निरीक्षण कर सकूं।


योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः।


धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः।।1.23।।


5) भीष्म द्रोण आदि मुखियाओं के नाम के साथ इस संसार के कुरुक्षेत्र में एकत्रित कर्माभिमानी कौरवों को देखो


भीष्मद्रोणप्रमुखत: सर्वेषां च महीक्षिताम् ।


उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरुनिति ।।1:25।



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श्रीमद्भगवद्गीता उत्तर 4

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